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कविता

लेखक स्वयं अपने आपको समर्पित करता है ये पंक्तियाँ

ब्लादीमिर मायकोव्स्की

अनुवाद - वरयाम सिंह


प्रहार की तरह भारी
बज गये हैं चार

मुझ जैसा आदमी
सिर छिपाये तो कहाँ?
कहाँ है मेरे लिए बनी हुई कोई माँद?

यदि मैं होता
महासागर जितना छोटा
उठता लहरों के पंजों पर
और कर आता चुंबन चंद्रमा का!
कहाँ मिलेगी मुझे
अपने जैसी प्रेमिका?
समा नहीं पायेगी वह
इतने छोटे-से आकाश में।

यदि मैं होता
करोड़पतियों जितना निर्धन!
पैसों की हृदय को क्‍या जरूरत?
पर उसमें छिपा है लालची चोर।
मेरी अभिलाषाओं की अनियंत्रित भीड़ को
कैलिफोर्नियाओं का भी सोना पड़ जाता है कम।
यदि मैं हकलाने लगता
दांते
या पेत्राक की तरह
किसी के लिए तो प्रज्‍ज्‍वलित कर पाता अपना हृदय।
दे पाता कविताओं से उसे ध्‍वस्‍त करने का आदेश।
बार-बार
प्‍यार मेरा बनता रहेगा विजय द्वार :
जिसमें से गुजरती रहेंगी
बिना चिह्न छोड़े प्रेमिकाएँ युगों-युगों की।
यदि मैं होता
मेघ गर्जनाओं जितना शांत -
कराहता
झकझोरता पृथ्‍वी की जीर्ण झोंपड़ी।
निकाल पाऊँ यदि पूरी ताकत से आवाज़ें
तोड़ डालेंगे पुच्‍छलतारे पने हाथ
और दु:खों के बोझ से गिर आयेंगे नीचे।

ओ, यदि मैं होता
सूर्य जितना निस्‍तेज
आँखों की किरणों से चीर डालता रातें!
बहुत चाहता हूँ मैं पिलाना
धरती की प्‍यासी प्रकृति को अपना आलोक।

चला जाऊँगा
घसीटता अपनी प्रेमिका को।
न जाने किस ज्‍वरग्रस्‍त रात में
किन बलिष्‍ठ पुरुर्षों के वीर्य से
पैदा हुआ मैं
इतना बड़ा
और इतना अवांछित?

 


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